Thursday, 13 July 2023

सम्राट पृथ्वीराज चौहान की कहानी (Hindi) and ( English)

            सम्राट पृथ्वीराज चौहान की        कहानी


सम्राट पृथ्वीराज चौहान, भारतीय इतिहास के महान शासकों में से एक थे। उनका जन्म 1168 ईस्वी में दिल्ली के निकट अजयमेर में हुआ। पृथ्वीराज ने अपने पिता सोमेश्वर चौहान के बाद राजस्थान के चौहान राजवंश का गढ़ बनाया।


पृथ्वीराज की बाल्यकाल की उपास्यता और उनकी सर्वदा धार्मिक भावना ने उन्हें एक अत्यधिक साहसी और वीर पुरुष बनाया। उन्होंने अपनी सेना को अत्यंत ताकतवर बनाने के लिए बहुत सारे युद्धों का अनुभव किया।


पृथ्वीराज की सबसे बड़ी विजय उनके पिता की मृत्यु के बाद हुई जब उन्होंने अपने राज्य को बढ़ावा दिया और अपने सम्राटीय शक्ति को प्रदर्शित किया। पृथ्वीराज के शासनकाल में उन्होंने दिल्ली सल्तनत के मुकाबले बहुत बड़ी सेना का निर्माण किया। उन्होंने अपने सेनानायक मुख्यमंत्री चंदबरदाई के साथ मिलकर बहुत सारे क्षेत्रों को जीता और अपने राज्य का क्षेत्रफल बड़ाया।



पृथ्वीराज की विजय की कहानी में सबसे प्रसिद्ध हैं उनकी बाटला युद्ध में जयपुर के खंडेल राजपूतों के साथ विजय। इस युद्ध में पृथ्वीराज की अद्वितीय वीरता और साहस ने उन्हें एक महान योद्धा के रूप में प्रस्तुत किया।


हालांकि, विजय के बाद उन्होंने कई स्वार्थी शासकों के साथ युद्ध किए, जिन्होंने उन्हें परास्त कर दिया। सबसे प्रमुख में से एक था मुहम्मद गोरी, जो बार-बार पृथ्वीराज के खिलाफ आक्रमण किया।


1206 ईस्वी में, पृथ्वीराज की सेना को चुनौती मिली, और उन्होंने इस युद्ध में हार माननी पड़ी। मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें लाहौर ले गए।


वहां पृथ्वीराज को जबरदस्ती लाहौर के शहर के चौराहे पर गोरी के साम्राज्य की सभा के सामने घुटनों पर झुकने को कहा गया। इस पर पृथ्वीराज ने कहा, "हाथों पर बंधी जो रेशमी ज़न्जीरें, उसे देखकर तुम कौन जानोगे कि मेरा दिल कट रहा है।"


पृथ्वीराज की इस बातचीत ने उनकी वीरता, गर्व और साहस को दिखाया। हालांकि, उनकी विरासत और सामरिक चतुराई ने उन्हें महान बनाया। उनकी विजय की कहानी भारतीय इतिहास के पन्नों में सदैव बनी रहेगी।


दुर्ग पृथ्वीराज चौहान का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। इस दुर्ग को पृथ्वीराज ने अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया था। यह दुर्ग उच्च स्थान पर स्थित था जिससे उन्हें अपने राज्य पर नजर रखने और युद्ध में रक्षा करने का अवसर मिलता था।


पृथ्वीराज चौहान के सामरिक दक्षता और वीरता का परिचय उनके बहादुर सेनानायकों के माध्यम से हुआ। उन्होंने अपनी सेना को न केवल ताकतवर बनाया, बल्कि उन्हें विजय प्राप्त करने के लिए युद्ध कौशल और योद्धा शक्ति भी प्रदान की।


हालांकि, दुर्भाग्यवश, पृथ्वीराज की शासनकाल की अंतिम दशकों में उन्हें अपने स्वार्थी राजनीतिक विरोधियों के साथ निपटना पड़ा। मुहम्मद गोरी के आक्रमण के बाद, पृथ्वीराज को अपनी हार का सामना करना पड़ा और वे उस घटना में शहीद हो गए।


पृथ्वीराज चौहान की अहिंसा परायणता, वीरता, और साहस सदैव उनके जीवन और कार्यों में अद्यायित रहेगी। उन्होंने भारतीय इतिहास में अपनी एक महत्वपूर्ण पहचान बनाई है और उनकी कथाएं आज भी हमारे दिलों में जीवित हैं।




        The Story of Emperor Prithviraj Chauhan


Emperor Prithviraj Chauhan was one of the great rulers in the history of India. He was born in 1168 CE near Ajmer, close to Delhi. After his father, King Someshwar Chauhan, Prithviraj established the Chauhan dynasty as a prominent kingdom in Rajasthan.


During his childhood, Prithviraj developed a deep devotion and a constantly religious mindset, which made him a courageous and valorous individual. He gained extensive experience in warfare, making his army extremely powerful.


His greatest victory came after his father's death when he expanded his kingdom and showcased his imperial might. During Prithviraj's reign, he built a formidable army, surpassing the might of the Delhi Sultanate. With the assistance of his chief minister, Chand Bardai, he conquered numerous territories and expanded the domain of his kingdom.


The most famous tale of Prithviraj's triumph is his victory over the Khandela Rajputs of Jaipur in the Battle of Tarain. His unmatched bravery and courage in this battle established him as a great warrior.


However, after his victory, he faced several self-seeking rulers who challenged him. One of the most prominent among them was Muhammad Ghori, who repeatedly launched invasions against Prithviraj.


In 1206 CE, Prithviraj faced a decisive battle where he had to accept defeat. Muhammad Ghori captured him and took him to Lahore. There, Prithviraj was forcefully brought to kneel in front of the assembly of Ghori's empire. In response, Prithviraj said, "How would you know that my heart is bleeding when it is bound by silken chains?"


Prithviraj's bravery, pride, and courage were exemplified through this conversation. Despite his defeat, his valor and military expertise immortalized him as a great warrior in the pages of Indian history.



The fort of Prithviraj Chauhan also played a significant role. He established this fort as his capital. Situated at an elevated location, it provided him a vantage point to oversee his kingdom and defend it during battles.


Prithviraj Chauhan's military prowess and valor are best portrayed through his brave generals. He not only built a powerful army but also equipped them with the skills and strength to achieve victory.


Unfortunately, in the final decade of his reign, Prithviraj had to deal with treacherous political opponents. After the invasion of Muhammad Ghori, he confronted his own downfall and eventually embraced martyrdom.


Prithviraj Chauhan's commitment to non-violence, bravery, and courage will forever remain a part of his life and achievements. He has left an indelible mark in Indian history, and his stories continue to live on in our hearts even today.

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वीर सेना की चुनौती

                     वीर सेना की चुनौती



क समय की बात है, जब युद्ध के गर्म तैयारियां भूमि पर चरम पर थीं। एक देश था जो एक सशक्त विराट सेना के रूप में अपनी मान्यताओं के लिए जानी जाती थी। यह वीर देश संघर्षों से नहीं डरता था और अपनी स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा करने के लिए सजग रहता था।


इस युद्ध में शत्रु सेना एक बहुत बड़ी बाधा बन चुकी थी, जो वीर देश के नियंत्रण और आजादी को खतरे में डाल रही थी। वीर सेना को एक खतरनाक अवधारणा दी गई थी - शत्रु सेना ने एक विजेता पुरुष को उनकी सेना के बाहर एक मुक्ति की प्रतिज्ञा दी थी। यदि वह विजेता अपनी सेना के साथ वापस नहीं आ सकता था, तो वीर सेना को अपनी जीवन की मुक्ति देनी पड़ती थी।


वीर सेना की युवा और निडर सेना के वीरों ने इस बाधा को स्वीकार किया और शत्रु सेना की चुनौती स्वीकार कर ली। एक निर्भय योद्धा ने अपनी सेना के बारे में विचार किया और एक उच्च सैनिक समिति के सामने एक योजना प्रस्तुत की। यह योजना सेना के प्रमुख नेता ने स्वीकार की और तत्परता के साथ योद्धाओं ने अपनी तैयारियों की शुरुआत की।


युद्ध के दिन आये और सभी योद्धा अपनी सेना के साथ शत्रु सेना के द्वार पहुंचे। संगठित और विचारशील योजना के बावजूद, शत्रु सेना काफी मजबूत थी और वीर सेना को प्रमाणित करने के लिए अपार कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। युद्ध भीषण और खौफनाक था, जहां हथियारों की झांकियाँ, माथापच्ची, और शोरगुल के बीच सबकुछ एक बड़े मुकाबले का हिस्सा बन गया।


शत्रु सेना की गहरी और मजबूती को देखकर वीर सेना के योद्धाओं का हृदय कांप उठा, लेकिन वे हिम्मत नहीं हारे। उन्होंने अपने अस्त्रों का सबसे अच्छा उपयोग किया, अपनी योजना को पूरी तरह से निभाने के लिए अपनी शक्ति और सामर्थ्य का बेहतरीन उपयोग किया। धीरज और साहस के साथ, वीर सेना ने शत्रु सेना को तत्परता से मुकाबला किया।


एक बड़ी लड़ाई के बाद, शत्रु सेना थोड़ी कम हो गई थी, पर वीर सेना ने अपनी आत्मविश्वास की हार नहीं मानी। उन्होंने आपसी सहयोग और सामरिक ताकत के साथ एकजुट होकर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होना जारी रखा।


दिन दहाड़े वीर सेना और शत्रु सेना के बीच तीव्र लड़ाई चल रही थी। योद्धाओं की हथेली में लहराते तलवारें, दुर्घटनाग्रस्त रक्त-लहरें और साहस की गरिमा से भरे हुए मन में इकट्ठे होने का भाव था।


चमकदार बिंदियों वाले आकाश में फटते रॉकेट, घने धुएं और दहशतभरे शोर ने सबको आकर्षित किया। योद्धाओं ने अपनी अद्वितीय कलाओं को प्रदर्शित किया और प्रतिस्पर्धा में अपनी अद्वितीयता साबित की। युद्धभूमि में लड़ रहे हर वीर शूरवीर की भूमिका निभा रहा था, जहां प्रत्येक पल में जीवन और मौत की जंग थी।


समय बितते ही, शत्रु सेना की पंक्तियों में छेद होने लगे और वीर सेना का मोर्चा बदलने का अवसर मिला। वीर सेना के योद्धाओं ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए आगे बढ़कर शत्रु सेना को घेर लिया। अप्रत्याशित हमले और चतुरता से, वीर सेना ने शत्रु सेना को अचंभित कर दिया। उन्होंने उन्नति का लाभ उठाते हुए शत्रु सेना के प्रमुख स्थानों को लक्ष्य बना लिया और उन्हें ध्वस्त कर दिया।


अन्ततः, युद्ध भूमि पर जीत का विजय झंडा लहरा रहा था। वीर सेना ने अपनी साहसिकता, समर्पण और समर्थन की वजह से शत्रु सेना को परास्त किया था। वे गर्व के साथ अपने संकल्प को पूरा करने के लिए वापस लौटे और अपने देश को शांति, स्वतंत्रता और उच्चतम सम्मान दिया।


यह एक वीर युद्ध कहानी थी, जो हमें साहस, धैर्य, और एकजुटता का संदेश देती है। यह बताती है कि जब लोग एकजुट होते हैं और साथ मिलकर संघर्ष करते हैं, तो कोई भी बाधा अवास्तविक नहीं हो सकती है और जीत सुनिश्चित होती है।

Wednesday, 12 July 2023

दोस्ती की मस्ती

                      दोस्ती की मस्ती


एक बार एक शेर और एक भालू जंगल में रहते थे। शेर बहुत गर्व से अपने आप को बताता था कि वह जंगल का सबसे ताकतवर और शक्तिशाली जानवर है। भालू ने उसे सुनते हुए कहा, "तुम सोचते हो कि तुम बहुत बड़े और ताकतवर हो, लेकिन मेरे पास एक बहुत बड़ा और ताकतवर दोस्त है।" 


शेर चिढ़ाते हुए बोला, "हां, हां, ठीक है। तेरे पास कौनसा ऐसा दोस्त है जो मुझसे भी बड़ा है?" 


भालू ने अजीबोगरीब एक मुखौटा पहना और कहा, "यह है मेरा दोस्त!" 


शेर बहुत हंसी में रहकर बोला, "ये कैसा दोस्त है? वह तो तेरी तरह ही दिखता है!" 


भालू ने हंसते हुए कहा, "हां, यह सच है। लेकिन ये मेरा 'बेहतरीन' दोस्त है।" 


शेर ने हैरानी से पूछा, "बेहतरीन दोस्त? कैसे?" 


भालू ने आत्मविश्वास से कहा, "देखो, जब मैं इस मुखौटे को पहनता हूँ और उसके साथ घूमता हूँ, तो सभी जानवर डर के मारे भागने लगते हैं। इसीलिए ये मेरा बेहतरीन दोस्त है!" 


शेर ने मुँह चिढ़ाते हुए कहा, "तू सचमुच मस्त और मजेदार है, भालू! तूने मुझे हंसा दिया!" 



इस चुटकुले से शेर और भालू दोनों हंसते हुए जंगल में खेलने चले गए। और वहां से उनकी दोस्ती और मजेदार दिनचर्या शुरू हो गई।

Billu ki kahani 😂

एक बार की बात है। बिल्लू नामक आदमी की एक नई नौकरी लगी। वह एक बड़ी कंपनी में काम करने लगा। उसकी नौकरी एक बार दूसरे शहर में गए राजस्थान के एक गांव में ट्रेन के पटरियों की सुरक्षा करनी

थी। बिल्लू को अच्छी तरह से ट्रेन के पटरियों की जांच करनी थी कि कहीं कोई खराबी तो नहीं है।

बिल्लू बहुत ही जिम्मेदार और समझदार आदमी था, लेकिन उसकी बूढ़ी आई ने उसे साथ छोड़ दिया था क्योंकि वह वहां नहीं रहना चाहती थी। अब बिल्लू अकेला ही वहां रहना पड़ गया। उसने एक मस्जिद में रहने का ठिकाना ढूंढ़ा और वहां चला गया।

एक दिन, बिल्लू को ट्रेन में काम करते वक्त बहुत बड़ा भूख लग गयी। वह खाना खाने के लिए बाहर निकला। उसने एक पकवान की दुकान देखी और वहां जाकर एक दब्बा बिरयानी खरीदी। वह वापस आकर मस्जिद में बैठ गया।

जब उसने दब्बा खोला तो वह देखा कि उसकी बिरयानी के ऊपर एक चूहा बैठा हुआ है। बिल्लू बहुत ही चिढ़चिढ़ा गया और चूहे को उड़ाने की कोशिश करने लगा। चूहा भाग नहीं रहा था और बिल्लू को बहुत परेशानी हो रही थी।

वह अपने दोस्त सोमनाथ को बुलाकर समस्या बताने चला गया। सोमनाथ बहुत ही चतुर आदमी था और उसे बिल्लू की मदद करने में बड़ा मजा आया।

सोमनाथ ने बिल्लू से कहा, "यार, इस चूहे को तुम पीछा करो, मैं तुम्हारे पीछे पीछे उसे पकड़ लूंगा।"

बिल्लू ने सोमनाथ की बात मान ली और वह चूहे के पीछे-पीछे दौड़ने लगा। चूहा भाग रहा था लेकिन जहां भी जाता, वहां बिल्लू और सोमनाथ पहुंच जाते थे। इस तरह दौड़ते दौड़ते, चूहा ट्रेन से बाहर निकल आया।

बिल्लू और सोमनाथ खुशी-खुशी उसे पकड़ लिया और उसे छोड़ दिया। वे दोस्त हंसी में लोट पोट हो गए।

बिल्लू ने कहा, "भाई सोमनाथ, यह चूहा तो मुझे अपने खाने की दुकान से छुरा छुरा करके यहां आ गया

सोमनाथ हंसते हुए बोला, "अरे बिल्लू भाई, तुम्हारे इस चूहे ने तो मुझे भी छुरा छुरा कर दिया है। मैंने तो सोचा था तुम उसे पकड़ोगे, पर इतनी तेजी से वह भागा कि मुझे उसे पकड़ने का मौका ही नहीं मिला।"

बिल्लू और सोमनाथ दोस्ती के बंधन में हंसते रहे और वहां अपनी मस्ती करते रहे। उनकी हंसी सुनकर मस्जिद के अंदर रहने वाले लोग भी आ गए और उनसे पूछा, "ये तो हंसी की धार है, इसमें क्या बात है?"

बिल्लू ने अपनी बिरयानी और चूहे की कहानी सबको बताई। सब लोग हंसी में लोट पोट हो गए और चूहे को देखकर वे भी अपने पेट को हंसी से ठहराने लगे।

इस घटना के बाद से बिल्लू का नाम गांव के लोगों के बीच फेमस हो गया। उन्हें 'चूहे वाला बिल्लू' के नाम से पुकारने लगे। बिल्लू खुशी खुशी अपनी नयी पहचान को स्वीकार कर लिया और उसकी मस्ती और मज़ाकियां गांव में लोगों को हंसाने लगी।

इस तरह, 'चूहे वाला बिल्लू' ने अपनी नौकरी के अलावा गांव के लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली और सबको हंसी की धार से जोड़ दिया।

Tuesday, 11 July 2023

तहखाने की रात...


                         तहखाने की रात...


एक अद्भुत रात की गहरी अंधकार में, एक महान और पुराने हॉस्पिटल का तहखाना अकेले पड़ा था। यह हॉस्पिटल एक जगह के निकट एक बंद गांव में स्थित था और अब तक बच्चों की डरावनी कहानियों का विषय बन चुका था।


गांव के लोग इस हॉस्पिटल की देहलीज पर कदम रखने से बचते थे, क्योंकि कहानियां यहां कहती थीं कि यहां अनुभव न होने वाली चीज़ें होती हैं। तहखाने की दरवाज़ा अब तक बंद थी और उसका आकर्षण केवल उत्सवों के समय ही देखा जाता था।


एक दिन, जब रात का अंधकार छानने लगा और तहखाने का वातावरण वहीं का वहीं था, गांव के एक जवान युवक, नाम विजय, तहखाने की खुदाई के लिए आग्रह कर रहा था। उसे यहां घूमने की आवश्यकता थी, क्योंकि वह इसे सिर्फ एक भूतों की कहानी मानता था। उसकी सबको कटु टिप्पणियों का नहीं दर्द होता था, लेकिन वह नए अनुभवों के लिए आग्रह कर रहा था।


संतुष्ट करने के लिए, गांव के अत्यंत संप्रदायी और विश्वासघाती गुरु ने उसे एक अनुभव के लिए अनुमति दी, परंतु उसने विजय को चेतावनी दी कि यह सिर्फ उसके अंतर्निहित डरों को जगा सकता है।


धीरे-धीरे, विजय अकेले तहखाने के अंदर चला गया। उसने जोरदार प्रकाश के साथ एक लैंटर्न ले जाया, क्योंकि बिजली का सप्लाई इस क्षेत्र में बंद था। वह एक अद्भुत माहौल में पहुंचा, जहां ठंडक और बिजली की चमक देखने के लिए कोई वजह नहीं थी।


तहखाने के अंदर, विजय ने कुछ अजीबोगरीब ध्वनियों को सुना और उसे लगा कि कोई उसकी आवाज सुन रहा है। एक विचित्र अनुभव और आकर्षण ने उसे चुम्बकित कर दिया। वह दिमाग में वही सवाल उठाने लगा - क्या तहखाने में सचमुच भूतों की आत्माएं हैं?


तभी, उसने एक डरावनी आवाज सुनी - बांधकर रखे गए एक कमरे से आ रही है। विजय ने अपने हृदय की धड़कन को बढ़ाते हुए उस कमरे की ओर चला।


जैसे ही वह कमरे की दरवाज़ा खोला, विजय ने देखा कि यह गंभीर और अत्यंत भयानक रूप से सजा हुआ है। कमरे की मौजूदा वस्तुएं धूसर हो गई थीं और जमी हुई धूल से भरी थी। तहखाने की रौशनी के निशान यहां तक नहीं पहुंच रहे थे, जिससे कमरे की भयानक वैभवता और रहस्यमयीता बढ़ रही थी।


विजय अपने अंदर के सभी साहसिकता को इकट्ठा करते हुए आगे बढ़ा और देखा कि वहां किसी और व्यक्ति का प्रतिबिम्ब दीख रहा है। व्यक्ति एक वृद्ध आदमी की तरह दिख रहा था, जिसका चेहरा डार्कनेस में छिपा हुआ था।


विजय की धड़कन तेज हो गई और उसे डर महसूस होने लगा, लेकिन वह अपनी साहसिकता को बनाए रखने के लिए प्रयास करता रहा। उसने व्यक्ति से पूछा, "कौन हो तुम? यहां क्या कर रहे हो?"


व्यक्ति ने धीरे से बोला, "तुमने मुझे बुलाया है, विजय। मैं यहां तुम्हें एक सत्य का प्रकटीकरण करने के लिए हूँ। तुम्हारे सामरिक निश्चय और वीरता की परीक्षा के लिए मैं यहां हूँ।"


विजय चकित हो गया, लेकिन उसने साहसपूर्वक पूछा, "सत्य क्या है? और मेरे निश्चय की परीक्षा कैसे होगी?"


व्यक्ति ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा, "तुम्हारी धैर्यशीलता के साथ इस कमरे में दबी हुई आत्मा छूटने का समय आ चुका है। तुम्हें उस आत्मा की मुक्ति दिलानी होगी। इसके लिए तुम्हें वहां सजी हुई आत्मा के पास जाना होगा और उसे स्वतंत्र करना होगा।"


विजय ने अपनी आंखों को भरकर कहा, "मैं यह कर सकता हूँ। मुझे दिखाओ, मैं उस आत्मा की मुक्ति के लिए जा सकता हूँ।"


व्यक्ति ने एक अस्तित्ववादी आभूषण दिया, जो उसे उस आत्मा के पास ले जाने में मदद करेगा। विजय ने उसे पहन लिया और उसके नजदीक जाने के लिए धैर्य की आवश्यकता से उपयोग किया।


तहखाने की गहरी गुफा में बढ़ते हुए, विजय ने आवाज की पदत्रियों का पीछा किया और आखिरकार उसे एक गहरे और डरावने कमरे में पहुंचते हुए देखा। वहां एक अंधेरे कोने में एक आत्मा खड़ी थी, जिसकी आवाज विजय को खींच रही थी।


धीरे-धीरे विजय ने आत्मा के पास जाने का प्रयास किया। उसे भयंकर संकट से जूझना पड़ा, लेकिन उसने अपने आपको सामर्थ्यपूर्ण बनाया और आत्मा को उसकी आवश्यकता समझाई।


आत्मा ने धीरे से विजय के पास आकर उसे धन्यवाद दिया और बताया कि वह इस हॉस्पिटल में एक दुष्ट आत्मा के द्वारा बंधी गई थी। विजय की धैर्यशीलता और साहस ने उसे आज़ाद कर दिया।


विजय और आत्मा ने मिलकर हॉस्पिटल से बाहर निकला और गांव के लोगों को यह सच्चाई बताई। यह घटना उनकी आंखों में विश्वास और साहस का प्रकटीकरण कर गई।


इस अनुभव से विजय ने सीखा कि डर के मुकाबले में धैर्य और संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है। वह बहादुरी और सहनशीलता के साथ अपने जीवन के अन्य कठिनाइयों का भी सामना करने के लिए तत्पर था।


इस तरह, विजय ने एक डरावनी रात में एक अनुभव से नयी शक्ति और विज्ञान प्राप्त की। उसकी बहादुरी और साहसपूर्ण कहानी गांव के लोगों के बीच फैली और यहां तक कि भूतिया हॉस्पिटल की कहानी भी एक साहसिक और अद्भुत कथा के रूप में याद की जाने लगी।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान की कहानी (Hindi) and ( English)

            सम्राट पृथ्वीराज चौहान की        कहानी सम्राट पृथ्वीराज चौहान, भारतीय इतिहास के महान शासकों में से एक थे। उनका जन्म 1168 ईस्वी म...